Sunday 11 September 2011

Arte Digital e Poesia: COMO É BOM SE DAR CARINHO DE VEZ EM QUANDO....OUVI...

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Sensuality: Cartões com a Deusa Afrodite

Sensuality: Cartões com a Deusa Afrodite: http://www.orkut.com/Main#Community?cmm=102668504

Sensuality: Cartões com a Deusa Afrodite

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Yuva - MSN India | सुंदरता और लंबी उम्र के लिए योग क्रिया

Yuva - MSN India | सुंदरता और लंबी उम्र के लिए योग क्रिया
योग में यूं तो शुद्धि क्रियाएं अनेक हैं किंतु मुख्यत: नौ का यहां वर्णन किया जाता हैं- नेती, धौति, बस्ती, न्यौली, त्राटक, कपालभाति, धौंकनी, बाधी, शंख प्रक्षालयन। उक्त क्रियाओं को किसी योग शिक्षक के सानिध्य में रहकर ही सिखा जा सकता है। योगाभ्यास के आरंभ में सर्वप्रथम इन क्रियाओं का अभ्यास कर इन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए। इससे योगाभ्यास का शत-प्रतिशत लाभ प्राप्त होता है। इसे मन से करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। उक्त क्रियाओं का वर्णन इस प्रकार है-


नेती : महीन सूत की डोरी बनाएँ, जिसकी लंबाई बारह इंच हो। इसको गरम पानी में भिगोकर, एक सिरे पर थोड़ा-सा मोम लगाकर, प्रातःकाल नित्यक्रिया के बाद एक खुले स्थान में बैठकर डोरी का मोम वाला सिरा नाक के एक छेद में धीरे-धीरे घुसाकर नीचे-ऊपर दो-चार बार खींचना चाहिए और फिर मुँह से निकाल लेना चाहिए। इसी प्रकार दूसरे नाक के छेद से भी करनी चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन यह नेती क्रिया करनी चाहिए।

इसका लाभ : इस नेती क्रिया के अभ्यास से नासिका मार्ग की सफाई तो होती ही है साथ ही इसके नियमित अभ्यास से कान, नाक, दाँत आदि में किसी भी प्राकार का कोई रोग नहीं होता और आँख की दृष्टि भी तेज हो जाती है।

धौति : महीन कपड़े की चार अंगुल चौड़ी और सोलह हाथ लंबी पट्टी तैयार कर उसे गरम पानी में उबाल कर धीरे-धीरे खाना चाहिए। खाते-खाते जब पंद्रह हाथ कपड़ा कण्ठ मार्ग से पेट में चला जाए, मात्र एक हाथ बाहर रहे, तब पेट को थोड़ा चलाकर, पुनः धीरे-धीरे उसे पेट से निकाल देना चाहिए।

इसका लाभ : इस क्रिया का प्रतिदिन अभ्यास करने से किसी भी प्रकार का चर्म रोग कभी नहीं होता। पित और कफ संबंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं तथा संपूर्ण शरीर शुद्ध हो जाता है।

बस्ती : योगानुसार बस्ती करने के लिए पहले गणेशक्रिया का अभ्यास करना आवश्यक है। गणेशक्रिया में अपना मध्यम अंगुली में तेल चुपड़कर उसे गुदा- मार्ग में डालकर बार-बार घुमाते हैं। इससे गुदा-मार्ग की गंदगी दूर हो जाती है और गुदा संकोचन और प्रसार का भी अभ्यास हो जाता है।

जब यह अभ्यास हो जाए, तब किसी तालाब में जाकर कमर तक पानी में खड़े होकर घुटने को थोड़ा आगे की ओर मोड़कर दोनों हाथों को घुटनों पर दृढ़ता से रखकर फिर गुदा मार्ग से पानी ऊपर की ओर खींचे। पेट में जब पानी भर जाए तब पेट को थोड़ा इधर-उधर घुमाकर, पुनः गुदा मार्ग से पूरा पानी निकाल दें।

इसका लाभ : यह क्रिया किसी जानकार व्यक्ति के निर्देशन में ही करना चाहिए। इसके अभ्यास से शरीर शुद्ध तो होता ही है, विशेष लाभ यह है कि लिंग-गुदा आदि के सभी रोग सर्वथा समाप्त हो जाते हैं।

न्यौली : पद्मासन लगाकर दोनों हाथों से दोनों घुटनों को दबाकर रखते हुए शरीर सीधा रखें। इसके बाद पूरा श्वास बाहर निकालकर खाली पेट की मांसपेशियों को ढीला रखते हुए अंदर की ओर खींचे। इसके बाद स्नायुओं को ढीला रखते हुए पेट को दाईं-बाईं ओर घुमाएँ।

इसका लाभ : इससे पेट में गंदगी नहीं रह पाती और पेट संबंधी सभी रोग भी इससे दूर होते हैं। गर्मी संबंधी सभी रोग, वायु, गोला, सभी प्रकार के दर्द आदि भी इससे दूर होत जाते हैं। सीखते समय जानकार व्यक्ति के निर्देशन में ही इसे सीखना चाहिए।
त्राटक क्रिया : त्राटक क्रिया के बारे में सभी जानते हैं। दोनों आँखों को किसी एक सूक्ष्म बिंदू पर पर्याप्त समय तक बिना पलक झपकाएँ स्थिर रखने का अभ्यास करें। अधिक देर तक एक-सा करने पर आँखों से आँसू निकलने लगते हैं। ऐसा जब हो, तब आँखें झपककर अभ्यास छोड़ दें। इस प्रकार बार-बार अभ्यास करना चाहिए।

इसका लाभ : कहीं-कहीं दृष्टि का भूमध्य स्थान पर भी स्थिर किया जाता है। इस त्राटक क्रिया से दृष्टि स्थिर होती है। आँख के सभी रोग छूट जाते हैं। यह क्रिया भी किसी योग शिक्षक से सीखनी चाहिए।

कपालभाति : पद्मासन में दोनों हाथों से घुटनों को दबाकर शरीर सीधा रखते हुए झटके से बार-बार श्वास छोड़ें। श्वास लेने ‍की क्रिया अपने आप होती है। श्वास छोड़ने की गति एक मिनट में एक सौ बीस होनी चाहिए।

इसका लाभ : इसके नियमित अभ्यास से श्वास नलिका शुद्ध होती है। पेट के रोग दूर होते हैं, पाचन शक्ति बढ़ जाती है और शरीर संबंधी सभी रोग दूर हो जाने से कपाल में चमक आ जाती है। इस क्रिया को भी किसी योग शिक्षक से पूछकर ही करना चाहिए।

धौंकनी : कपालभाति के समान ही यह भी एक हठयोग की प्राचीन क्रिया है। इनमें लेना-छोड़ना दोनों झटके से बार-बार किया जाता है। आजकल इसका अधिक प्रचलन नहीं है और इसके स्थान पर कपालभाति से ही काम चलाया जाता है, लेकिन यह क्रिया भी कपालभाति की तरह लाभदायक हैं।

बाधी : बाघ आदि जानवर अस्वस्थ होने पर इसी प्रकार की क्रिया से स्वास्थ्य लाभ लेते हैं। इसलिए इसका नाम बाधी क्रिया दिया गया है। भोजन के दो घंटे बाद जब आधी पाचन क्रिया हुई होती है, दो अंगुली गले में डालकर वमन किया जाता है जिससे कि वह अधपचा अन्न बाहर निकल जाता है। इसे ही बाधी क्रिया कहा जाता है।

इसका लाभ : इससे पेट की सभी प्रकार की गंदगी या कफ आदि उस अधपचे अन्न के साथ निकल जाती है। फलतः पेट संबंधी शिकायतें दूर होती हैं।

शंख प्रक्षालयन : शंख बजाने के बाद जैसे उसे पानी से धोकर रखते हैं, उसी प्रकार शंख के बनावट वाली गुदा मार्ग के द्वारा पेट को धोकर साफ किए जाने के कारण इस शुद्धि क्रिया का नाम शंख प्रक्षालन पड़ा है।

इसके अभ्यास के लिए पूरे एक दिन की आवश्यकता होती है। जिस दिन यह अभ्यास करना हो उस दिन प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत्त हो गुनगुना पानी दो-तीन या चार गिलास पीने के बाद वक्रासन, सर्पासन, कटिचक्रासन, विपरीतकरणी, उड्डियान एवं नौली का अभ्यास करें। इससे अपने आप शौच का वेग आता है।

शौच से आने पर पुनः उसी प्रकार पानी पीकर उक्त आसनादिकों का अभ्यास कर शौच को जाएँ। इस प्रकार बार-बार पानी पीना, आसनादि करना तथा शौच को जाना सात-आठ बार हो जाने पर अंत में जैसा पानी पीते हैं, वैसा ही पानी जब स्वच्छ रूप से शौच में निकलता है, तब पेट पूरा का पूरा धुलकर साफ हो जाता है।

इसके बाद कुछ विश्राम कर ढीली खिचड़ी, घी, हल्का-सा खाकर पूरा दिन लेटकर आराम किया जाता है। दूसरे दिन से सभी काम पूर्ववत करते रहें। इस क्रिया को दो-तीन महीने में एक बार करने की आवश्यकता होती है।

इसका लाभ : इस क्रिया के करने से शरीर में एक नई स्फूर्ति और जीवन का संचार होता है। मन प्रसन्न रहता है तथा शरीर में नयापन व हल्कापन का अनुभव महीनों तक बना रहता है।

संपूर्ण क्रिया के लाभ और प्रभाव : हठयोग के शुद्धि क्रियाओं के अभ्यास से संपूर्ण शरीर को शुद्ध किया जा सकता है। इससे बुद्धि उज्जवल हो जाती है और शरीर बलवान बनकर सदा स्फूर्तिदायक बना रहता है। इन क्रियाओं से किसी भी प्रकार की गंदगी शरीर में स्थान नहीं बना पाती है और फलतः जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का कोई भी रोग नहीं होता।

Yuva - MSN India | प्राणायाम से जगाओ सुषुम्ना को

Yuva - MSN India | प्राणायाम से जगाओ सुषुम्ना को
कबहु इडा स्वर चलत है कभी पिंगला माही।
सुष्मण इनके बीच बहत है गुर बिन जाने नाही।।

बहुत छोटी सी बात है, लेकिन समझने में उम्र बीत जाती है। हमारी रोगी और निरोग रहने का राज छिपा है हमारी श्वासों में। व्यक्ति उचित रिति से श्वास लेना भूल गया है। हम जिस तरीके और वातावरण में श्वास लेते हैं उसे हमारी इड़ा और पिंगला नाड़ी ही पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं हो पाती तो सुषुम्ना कैसे होगी।

दोनों नाड़ियों के सक्रिय रहने से किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं सताता और यदि हम प्राणायाम के माध्यम से सुषुम्ना को सक्रिय कर लेते हैं तो जहां हम श्वास-प्रश्वास की उचित विधि से न केवल स्वस्थ, सुंदर और दीर्घजीवी बनते हैं वहीं हम सिद्ध पुरुष बनाकर ईश्वरानुभूति तक कर सकते हैं।

मनुष्य के दोनों नासिका छिद्रों से एक साथ श्वास-प्रश्वास कभी नहीं चलती है। कभी वह बाएँ तो कभी दाएँ नासिका छिद्र से श्वास लेता और छोड़ता है। बाएँ नासिका छिद्र में इडा यानी चंद्र नाड़ी और दाएँ नासिका छिद्र में पिंगला यानी सूर्य नाड़ी स्थित है। इनके अलावा एक सुषुम्ना नाड़ी भी होती है जिससे श्वास प्राणायाम और ध्यान विधियों से ही प्रवाहित होती है।

प्रत्येक एक घंटे के बाद यह 'श्वास' नासिका छिद्रों में परिवर्तित होता रहता है।

शिवस्वरोदय ज्ञान के जानकार योगियों का कहना है कि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने पर वह मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है। चंद्र नाड़ी से ऋणात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। जब सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होता है तो शरीर को उष्मा प्राप्त होती है यानी गर्मी पैदा होती है। सूर्य नाड़ी से धनात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है।

प्राय: मनुष्य उतनी गहरी श्वास नहीं लेता और छोड़ता है जितनी एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरूरी होती है। प्राणायाम मनुष्य को वह तरीका बताता है जिससे मनुष्य ज्यादा गहरी और लंबी श्वास ले और छोड़ सकता है।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम की विधि से दोनों नासिका छिद्रों से बारी-बारी से वायु को भरा और छोड़ा जाता है। अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आ जाता है जब चंद्र और सूर्य नाड़ी से समान रूप से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने लगता है। उस अल्पकाल में सुषुम्ना नाड़ी से श्वास प्रवाहित होने की अवस्था को ही 'योग' कहा जाता है।

प्राणायाम का मतलब है- प्राणों का विस्तार। दीर्घ श्वास-प्रश्वास से प्राणों का विस्तार होता है। एक स्वस्थ मनुष्य को एक मिनट में 15 बार साँस लेनी चाहिए। इस तरह एक घंटे में उसके श्वासों की संख्या 900 और 24 घंटे में 21600 होनी चाहिए।

स्वर विज्ञान के अनुसार चंद्र और सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास के जरिए कई तरह के रोगों को ठीक किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास को प्रवाहित किया जाए तो रक्तचाप, हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है।

Yuva - MSN India | द्वंद्ध से मुक्ति का उपाय

Yuva - MSN India | द्वंद्ध से मुक्ति का उपाय


द्वंद्व का सामान्य अर्थ होता है दिमाग में दो तरह के विचार के बीच निर्णय नहीं ले पाना। जैसे उदाहरण के तौर पर कभी ईश्वर के अस्तित्व को मानना और कभी नहीं। कभी किसी को या खुद को गलत समझना और कभी नहीं। अनिर्णय की स्थिति में चले जाना या सही व गलत को समझ नहीं पाना। यदि इस तरह की स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो यह मस्तिष्क विकार का कारण बन जाती है। द्वंद्व का जितना असर मस्तिष्क पर पड़ता है उससे कहीं ज्यादा असर शरीर पर पड़ता है। द्वंद्व हमारी सेहत के लिए खतरनाक है।

जिनके दिमाग में द्वंद्व है, वह हमेशा चिंता, भय और संशय में ही ‍जीते रहते हैं। प्यार में भय, परीक्षा का भय, नौकरी का भय, दुनिया का भय और खुद से भी भयभीत रहने की आदत से जीवन एक संघर्ष ही नजर आता है, आनंद नहीं। इनसे दिमाग में द्वंद्व का विकास होता है जो निर्णय लेने की क्षमता को खतम कर देता है। इस द्वंद्व की स्थिति से निजात पाई जा सकती है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए द्वंद्व से मुक्त होना आवश्यक है।

*कैसे जन्मता है द्वंद्व : बचपन में आपके ऊपर प्रत्येक तरह के संस्कार लादे गए हैं, आप खुद भी लाद लेते हैं। फिर थोड़े बढ़े हुए तो सोचने लगे, तब संस्कारों के खिलाफ भी सोचने लगे, क्योंकि आधुनिक युग कुछ और ही शिक्षा देता है, लेकिन फिर डर के मारे संस्कारों के पक्ष में तर्क जुटाने लगे। इससे आप तर्कबाज हो गए। अब दिमाग में दो चीज हो गई- संस्कार और विचार।

फिर थोड़े और बढ़े हुए तो कुछ खट्टे-मिठे अनुभव भी हुए। आपने सोचा की अनुभव कुछ और, बचपन में सिखाई गई बातें कुछ और है। अब दिमाग में तीन चीज हो गई- संस्कार, विचार और अनुभव। संस्कार कुछ और कहता है, विचार कुछ और और अनुभव कुछ और। इन तीनों के झगड़ने में ज्ञान तो उपज ही नहीं पाता और द्वंद्व बना रहता है।

*द्वंद्ध से मुक्त का उपाय :

योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।- योगसूत्र

चित्तवृत्तियों का निरोध करना ही योग है। चित्त अर्थात बुद्धि, अहंकार और मन नामक वृत्ति के क्रियाकलापों से बनने वाला अंत:करण। चाहें तो इसे अचेतन मन कह सकते हैं, लेकिन यह अंत:करण इससे भी सूक्ष्म माना गया है। इस पर बहुत सारी बातें चिपक जाती है।

दुनिया के सारे धर्म इस चित्त पर ही कब्जा करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने तरह-तरह के नियम, क्रियाकांड, ग्रह-नक्षत्र, लालच और ईश्वर के प्रति भय को उत्पन्न कर लोगों को अपने-अपने धर्म से जकड़े रखा है। उन्होंने अलग-अलग धार्मिक स्कूल खोल रखें हैं। पातंजल‍ि कहते हैं कि इस चित्त को ही खत्म करो। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।

चित्त को राह पर लाने के लिए प्रतिदिन 10 मिनट का प्राणायाम और ध्यान करें। तीन माह तक लगातार ऐसा करते रहने से दिमाग शांत और द्वंद्व रहित होने लगेगा। जब भी कोई विचार आते हैं अच्छे या बुरे दोनों की ही उपेक्षा करना सिखें और व्यावहारिक दृष्टिकोण को अपनाएं अर्थात सत्य समझ और बोध में है विचार में नहीं।

*योगा पैकेज : आहार का शरीर से ज्यादा मन पर बहुत प्रभाव पड़ता है, तो आप क्या खाते हैं इस पर गौर करें। अच्छा खाएँ और शरीर की इच्छा से खाएँ, मन की इच्छा से नहीं। यौगिक आहार को जानना चाहें तो अवश्य जानें। आहार के बाद आसन के महत्व को समझें और तीसरा प्राणायाम व ध्यान नियमित करें। आसन से शरीर, प्राणायाम-ध्यान से मन-मस्तिष्क और आहार से दोनों का संतुलन बरकरार रहेगा।

Yuva - MSN India | लड़की पटाने के तरीके

Yuva - MSN India | लड़की पटाने के तरीके



स्कूल लाइफ से गुजरने के बाद बाद कुछ युवा छात्रों को चाहत होती है बढ़िया जॉब/करियर के अनुसार तैयारी करने की। तो कुछ होते हैं जिनकी सबसे पहली और तीव्र ख्‍वाहिश होती है एक अदद लड़की की। जिसे बाइक पर बिठाकर घुमा सकें, फिल्में देखने जा सकें, घंटों फोन पर ‍बतिया सकें और दोस्तों के बीच शान से कह सकें कि आखिर हमारा भी खाता खुल चुका है। ऐसे दोस्तों के लिए कुछ सुझाव हैं।

* इंट्रोडक्शन : पहले तो जाकर इंट्रोडक्शन की औपचारिकता पूरी करें। केवल अपने बारे र्में ही बताएं। पिताजी या अन्य परिजनों आदि की उपलब्धि का बखान आगे बढ़कर न करें।

* स्टेप बाई स्टेप ही आपको प्रोसेस पूरी करनी होगी। कभी भी जल्दबाजी न दिखाएं।

* कोई भी लड़की आपको पसंद आती है तो उसमें रूचि जरूर लें लेकिन हाथ धोकर पीछे पड़ जाने वाला काम न करें। इससे आपकी छबि अच्छी नहीं बनेगी और लड़की भी आपको फिर 'यूज' करने की ही कोशिश कर सकती है।

* ऐसा कोई काम न करें कि उसे लगे कि आप उसे प्रभावित करने के लिए कर रहे हैं। सहज रहें। जान-पहचान के बाद भी कभी चाय-कॉफी के लिए सीधे प्रपोज न करें। हां यदि क्लास आदि के बाद कभी समय है या बंक मारी है तो ऑफर कर सकते हैं।

* धीरे-धीरे अपने बारे में उसकी राय का पता लगाएं। मतलब वह आपको किस रूप में देखती है। या उसका झुकाव आपकी तरफ है भी या नहीं।

* कभी भी उससे अकेले में मिलने की जल्दबाजी न दिखाएं।

* मौके बेमौके बर्थडे आदि अवसर पर गिफ्‍ट देना न भूलें। शायद ही ऐसी कोई लड़की होगी जिसे चाकलेट या फूलों से लगाव नहीं होगा। कभी-कभी सभी दोस्तों के लिए तो कभी सिर्फ उन्हीं के लिए लेकर जाएं।

* वह लड़की किसी अन्य लड़के से बात करे भी तो सामान्य रूप से लें। उग्र भाव प्रकट न होने दें।

* फिल्मी स्टाइल की हूबहू कॉपी न करें क्योंकि रील लाइफ और रियल लाइफ में जमीन आसमान का अंतर होता है। पिक्चर में हीरो को पूरी स्क्रिप्ट पता होती है। सब कुछ तय लाइन पर चलना होता है जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता।

* एक चीज सुनने में आती है कि यदि लड़की को सेट करना हो तो उसकी सहेली को पूरे दिलो जान से लाइन मारो। थोड़ा सा ये फंडा अपने अनुभव और परिस्थिति के हिसाब से सेट कर लें। हो सकता है आपके साथ काम कर जाए।

* मजनू्ओं की तरह हरकतें न करें गलत इम्प्रेशन पड़ेगा।

* संभव हो तो अपनी बहन से उसकी दोस्ती करा दें। ताकि आपको उनसे और टच में रहने का मौका मिलेगा।

* प्यार की डाली पर खिलने वाले फूलों के साथ कांटे भी होते हैं निश्चित रूप से यह भी आपके ही खाते में आएंगे। जैसे मोहतरमा को चाहने वाले आप अकेले ही नहीं होंगे आपके अन्य साथी वगैरह भी हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में आपको एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का सामना भी करना होगा और साम, दाम, दंड भेद नीति से उन्हें परास्त कर अपनी पताका फहरानी होगी।

* कभी भी बड़ी-बड़ी डींगे नहीं हांके। अपने आपको बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं करें। आजकल जमाना सिम्पलिसिटी का है। यदि आप किसी क्षेत्र के माहिर खिलाड़ी हैं भी तो उसे सामान्य ढंग से ही बताएं।

* कभी-कभी किसी मसले समस्या, परेशानी आदि पर अपने विचारों का आदान-प्रदान करें। यह चीज काफी मायने रखती है। आप दोनों एक-दूसरे के विचारों को तो जानते ही हैं और भावनात्मक रूप से परस्पर करीब भी आते हैं।

दोस्तों से कभी चर्चा करें भी तो विश्वसनीय लोगों से। मतलब जो बात का बतंगड़ न बनाएं। नहीं तो लोग बात का मतलब कुछ और निकालकर बखेड़ा खड़ा करने वालों की कमी नहीं है।

सबसे जरूरी चीज कभी बाय चांस इसमें असफल हो भी जाएं तो नशीली चीजों का सेवन, स्वयं को या लड़की को हानि पहुंचाने जैसा कई कदम न उठाएं। इससे तो 'तू नहीं तो और सही और नहीं तो और सही' का फामूला सर्वथा बेहतर है।

तो इस परीक्षा पर खरा उतरने के लिए जुट जाएं तैयारी में। विश यू गड लक।

Yuva - MSN India | सेक्स पर टैक्स, कैसा अजूबा है यह..?

Yuva - MSN India | सेक्स पर टैक्स, कैसा अजूबा है यह..?



सेक्स पर टैक्स... क्या ऐसा हो सकता है? यह बात किसी को भी चौंका सकती हैं, लेकिन आम आदमी को इससे डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि जर्मनी के बॉन शहर में यह टैक्स यौनकर्मियों से वसूला जा रहा है। यह टेक्स उन्हीं यौनकर्मियों से वसूला जाएगा जो सड़कों से अपना धंधा चलाती हैं।

वेश्यावृत्ति पर कर लगाने वाले एक कदम के तहत जर्मनी के बॉन शहर में यौनकर्मियों के लिए 'सेक्स मीटर' लगाए गए हैं। इस कदम के तहत अब सड़कों से कार्य संचालन करने वाली यौनकर्मियों को अपना काम शुरू करने से पहले सड़क किनारे लगे मशीनों से एक टिकट लेना होगा।

गौरतलब है कि बॉन शहर में रात आठ बज कर 15 मिनट से लेकर सुबह छह बजे तक वेश्यावृत्ति वैध है। द डेली टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, वेश्यावृत्ति के लिए इस रात्रिकालीन टिकट का मूल्य 5.30 पाउंड होगा और इसकी कीमत इस पर निर्भर नहीं करेगी कि किसी यौनकर्मी को कितने ग्राहक मिलते हैं। यह मीटर पार्किंग मीटर की ही तरह होगा और यह उपयोगकर्ताओं को बताएगा कि उसे कब टिकट की जरूरत है।

अखबार के मुताबिक अगर कोई पुलिसवाला किसी यौनकर्मी को बिना टिकट के पकड़ लेता है तो यौनकर्मी से जुर्माना लिया जा सकता है या फिर उसके काम करने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

बॉन सिटी काउन्सलर की प्रवक्ता मोनिका फ्रॉम्बगेन ने कहा कि यह कर निष्पक्षता का मामला है। चकलाघरों या फिर सौना क्लब में काम करने वाली यौनकर्मियां कर चुकाती हैं।