हाँ ये ग़मों की ये शाम आखरी है
चढ़ा दो कफ़न ये सलाम आखरी है
यूँ भर के ये अँखियाँ टपकते जो आंसू
वो कहते हैं पिलो ये जाम आखरी है
सफ़र आखरी है कदम तो मिला लो
खुदा का दिया इंतजाम आखरी है
तरपते रहे पर सुकून था बस इतना
गमे - ज़िन्दगी का इनाम आखरी है
यूँ ख्वाबों पे हर पल रहे उम्र भर जो
उन्ही के लिए ये कलाम आखरी ह
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